Hi…Shayari Peoples, अस्सलाम वालेकुम नाजरीन आज इस ब्लॉग में हम आपको आज के दौर के मशहूर हो मारूफ शायद तहजीब हाफी के जिंदगी के बारे में बताएंगे नाजरीन इस नौजवान शायर का असल नाम तहजीब उल हसन कलमी है और इसको आमतौर पर तहजीब हाफी के नाम से जाना जाता है यह खूबसूरत और जतिन शायरी लिखने वाला वह कमाल शायर पंजाब के शहर डेरा गाजी खान की तहसील taunsa sharif से है
नाजरीन तहजीब हाफी 5 दिसंबर 989 को तहसील taunsa sharif के गांव Retra में पैदा हुए उनके वालिद का नाम गुलाम हसन है जो के हैदराबाद में हाजिर शरिज मुलाजिम है तहजीब काफी के दो भाई हैं एक का नाम मोहम्मद वकास है जो कि उनसे बड़ा है और दूसरे भाई का नाम मोहम्मद नजम है जो कि उससे यानी तहजीब हाफी से छोटा है नाजरीन तहजीब हाफी ने तालीम से लेकर मैट्रिक तक अपने गाँव retra में हासिल की और फिर आला तालीम के लिए अपने वालिद के पास हैदराबाद चले गए
हैदराबाद में मेहरान यूनिवर्सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग करने के बाद भागलपुर यूनिवर्सिटी से m.a. उर्दू में किया और वह आजकल लाहौर में मुकीम है नाजरीन तहजीब हांफ़ी की इतनी वीडियोस वायरल हुई है कि जिनका उर्दू अदब से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है वह भी तहजीब हांफ़ी की वीडियो शेयर कर रहे हैं नाजरीन तहजीब हांफ़ी की मशहूर जमाना गजल आप की खिदमत में पेश करना चाहूंगा
के किसे खबर है कि उम्र बस उस पर गौर करने पर कट रही है के ये उदासी हमारे जिस्मों से किस कदर लिपट रही है अजीब दुख है कि हम उसके होकर भी उसको छूने से डर रहे हैं अजीब दुख है कि हमारे हिस्से की आग औरो में बट रही है वो जों पेड़ों के सूखने और सबल होने से क्या किसी को यह बेल शायद मुसीबत में ही है जो मुझसे लिपट रही है और मैं उसका बस यही झूठ सुनने को फोन करता हूं सुनो यहां कोई मसला है तुम्हारी आवाज कट रही है
नाजरीन तहजीब हाफी शायरी में एक जिदत दिखाई देती है आजकल के नौजवान तहजीब हांफ़ी को इसलिए भी इतना पसंद करते हैं कि उनको लगता है कि हालिया दौर में उनकी दिल की बात को शायराना अंदाज में तहजीब हांफ़ी काफी अच्छे तरीके से पेश करते हैं तहजीब हाफी साहब की शायरी में दिल का दुख और दर्द कूट कूट कर भरी हुई है नाजरीन सोशल मीडिया पर लाखों लोगों की जानिब से तहजीब हाफी की शायरी सुनने और पसंद किए जाने के बाद उर्दू अदब के बड़े बड़े शायर मजबूर हो गए हैं कि उनकी मुल्की और गैर मुल्की की शायरी की बड़ी-बड़ी म्ह्फील्लो में तहजीब हाफी को मधु करें नाजरीन तहजीब हाफी लगातार दो-तीन महीनों से पाकिस्तान भर के university और अदब की मह्फीलो में उर्दू में बड़े-2 शायरों के साथ शिरकत कर रहे हैं और अपना कलाम पेश कर रहे हैं
यह कौन रहा बैठे हैं मुस्कुराते हैं मुसाफिरों को गलत रास्ता बताते हैं तेरे लगाए हुए जख्म क्यों नहीं भरते तेरे लगाए हुए जख्म क्यों नहीं भरते मेरे लगाए हुए पेड़ भी सूख जाते हैं उन्हें गीला था कि मैंने उन्हें नहीं चाहा उन्हें गिला था कि मैंने उन्हें नहीं चाहा यह जो अब मेरी तवज्जो से खौफ खाते हैं कोई तुम्हारा सफर पर गया तो पूछेंगे कोई तुम्हारा सफर पर गया तो पूछेंगे कि रेल गुजरे तो हम हाथ क्यों हिलाते हैं
जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो,
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो..!!
अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो..!!
मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो..!!
एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो..!!
थोड़ा लिखा और ज़्यादा छोड़ दिया
आने वालों के लिए रास्ता छोड़ दिया..!!
लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं
फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया..!!
तुम क्या जानो उस दरिया पे क्या गुजरी
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया..!!
बस कानों पर हाथ रख लेते थोड़ी देर
और फिर उस आवाज़ ने पीछा छोड़ दिया..!!
ख्वाबों को आँखों से मिन्हा करती है
नींद हमेशा मुझसे धोखा करती है..!!
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है
मिल जाए तो बात वगैरा करती है..!!
तहज़ीब हाफी शायरी हिंदी में
अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे हैं
के घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं..!!
हमे मिलना तो इन आबादियों से दूर मिलना
उससे कहना गए वक्तू में हम दरिया रहे हैं..!!
तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें
हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं..!!
हजारों लोग उसको चाहते होंगे हमें क्या
के हम उस गीत में से अपना हिस्सा गा रहे हैं..!!
बुरे मौसम की कोई हद नहीं तहजीब हाफी
फिजा आई है और पिंजरों में पर मुरझा रहे हैं..!!
ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था..!!
क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था..!!
ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था..!!
अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था..!!
ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेरे साथ
मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ..!!
यही कहीं हमें रस्तों ने बद्दुआ दी थी
मगर मैं भुल गया और कौन था मेरे साथ..!!
वो झांकता नहीं खिड़की से दिन निकलता है
तुझे यकीन नहीं आ रहा तो आ मेरे साथ..!!
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे..!!
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो
हम ऐसे बुजदिल भी पहले सफ में खड़े मिलेगे..!!
तुझे ये सड़के मेरे तवस्सुत से जानती हैं
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे..!!
Tehzeeb Hafi Sher-o-Shayari
Contents
दीया जले – तहज़ीब हाफी शायरी हिंदी में
तारीकियों को आग लगे और दीया जले
ये रात बैन करती रहे और दीया जले..!!
उसकी जबान में इतना असर है कि निशब्द
वो रौशनी की बात करे और दीया जले..!!
तुम चाहते हो कि तुमसे बिछड़ के खुश रहूँ
यानि हवा भी चलती रहे और दीया जले..!!
क्या मुझसे भी अज़ीज़ है तुमको दीए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दीया जले..!!
सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मै चाहता हूँ शाम ढले और दीया जले..!!
धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना..!!
तुमको दूर से देखते देखते गुज़र रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम न आना..!!
शहज़ादी – तहज़ीब हाफी शायरी हिंदी में
तू ने क्या क़िन्दील जला दी शहज़ादी
सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी
शीश-महल को साफ़ किया तिरे कहने पर
आइनों से गर्द हटा दी शहज़ादी
अब तो ख़्वाब-कदे से बाहर पाँव रख
लौट गए हैं सब फ़रियादी शहज़ादी
तेरे ही कहने पर एक सिपाही ने
अपने घर को आग लगा दी शहज़ादी
मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहज़ादा
कैसे मुमकिन है ये शादी शहज़ादी
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है
कि उस से हम ने तुझे देखने की करनी है..!!
किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है..!!
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खिलता
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है..!!
तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुन्दरों से अकेले में बात करनी है..!!
हमारे गाँव का हर फूल मरने वाला है
अब उस गली से वो ख़ुश्बू नहीं गुज़रनी है..!!
तहज़ीब हाफी शायरी हिंदी में
गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ
नये मकान में खिड़की नहीं बनाऊंगा..!!
फरेब दे कर तेरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊंगा..!!
तुम्हें पता तो चले बेजबान चीज का दुःख
मैं अब चराग की लौ ही नहीं बनाऊंगा..!!
मैं दुश्मनों से जंग अगर जीत भी जाऊं
तो उनकी औरतें कैदी नहीं बनाऊंगा..!!
मैं एक फिल्म बनाऊंगा अपने सरवत पर
उसमें रेल की पटरी नहीं बनाऊंगा..!!
tehzeeb hafi poems in hindi
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ..!!
अज़ल से इन हथेलियों में हिज्र की लकीर थी
तुम्हारा दुःख तो जैसे मेरे हाथ में बड़ा हुआ
मेरे खिलाफ दुश्मनों की सफ़ में है वो और मैं
बहुत बुरा लगूँगा उस पर तीर खींचता हुआ..!!
मल्लाहों का ध्यान बटाकर दरिया चोरी कर लेना है,
क़तरा क़तरा करके मैंने सारा चोरी कर लेना है..!!
तुम उसको मजबूर किए रखना बातें करते रहने पर
इतनी देर में मैंने उसका लहज़ा चोरी कर लेना है..!!
आज तो मैं अपनी तस्वीर को कमरे में ही भूल आया हूँ
लेकिन उसने एक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है..!!
मेरे ख़ाक उड़ाने पर पाबन्दी आयत करने वालों
मैंने कौन सा आपके शहर का रास्ता चोरी कर लेना है..!!
tehzeeb hafi shayari in hindi
घर में भी दिल नहीं लग रहा, काम पर भी नहीं जा रहा
जाने क्या ख़ौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा..!!
रात के तीन बजने को हैं, यार ये कैसा महबूब है?
जो गले भी नहीं लग रहा और घर भी नहीं जा रहा..!!
घर में भी दिल नहीं लग रहा, काम पर भी नहीं जा रहा
जाने क्या ख़ौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा..!!
रात के तीन बजने को हैं, यार ये कैसा महबूब है?
जो गले भी नहीं लग रहा और घर भी नहीं जा रहा..!!
सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं, पेड़ का रूप धार लूँगा मैं..!!
रात भी तो गुजार ली मैंने, जिन्दगी भी गुजार लूंगा मैं..!!
तू निशाने पे आ भी जाए अगर कौन सा तीर मार लूँगा मैं..!!
तुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मैं चाहता तो दिल में कोई ओर दरवाज़ा बना लेता..!!
मैं अपने ख्वाब पूरे कर के खुश हूँ पर ये पछतावा नही जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था तुझे अपना बना लेता..!!
अकेला आदमी हूँ और अचानक आये हो, जो कुछ था हाजिर है
अगर तुम आने से पहले बता देते तो कुछ अच्छा बना लेता..!!
tehzeeb hafi poetry in hindi
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है बहोत, मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?
ये ज्योग्राफियाँ, फ़लसफ़ा, साइकोलोजी, साइंस, रियाज़ी वगैरह
ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो?
दोस्त किसको पता है कि वक़्त उसकी आँखों से फिर किस तरह पेश आया
हम इकट्ठे थे हंसते थे रोते थे एक दूसरे को बड़ा दखते थे..!!
जहन पर जोर देने से भी याद नहीं आता कि हम क्या देखते थे
सिर्फ इतना पता है कि हम आम लोगों से बिल्कुल जुदा देखते थे..!!
तब हमें अपने पुरखों से विरसे में आई हुई बद्दुआ याद आई
जब कभी अपनी आंखों के आगे तुझे शहर जाता हुआ देखते थे..!!
सच बताएं तो तेरी मोहब्बत ने खुद पर तवज्जो दिलाई हमारी
तू हमें चूमता था तो घर जाकर हम देर तक आईना देखते थे..!!
सारा दिन रेत के घर बनते हुए और गिरते हुए बीत जाता
शाम होते ही हम दूरबीनों में अपनी छतों से खुदा देखते थे..!!
उस लड़ाई में दोनों तरफ कुछ सिपाही थे जो नींद में बोलते थे
जंग टलती नहीं थी सिरों से मगर ख्वाब में फ़ाख्ता देखते थे..!!
नाजरीन यह था तहजीब हाफी की जिंदगी के बारे में आज का ब्लॉग यदि आपको आज का यह आर्टिकल पसंद आया तो इस आर्टिकल को अपने सभी दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करें इस आर्टिकल को यहाँ तक पढने और अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका शुर्किया अल्लाह आपको सलामत रहे यही मेरी अल्लाह से दरख्वास्त है…अल्लाह हाफिज…!!
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