तेरा ख़याल तेरी तलब और तेरी आरज़ू,
इक भीड़ सी लगी है मेरे दिल के शहर में..!!
दिल लेके मुफ्त कहते हैं कुछ काम का नहीं,
उल्टी शिकायतें हुईं अहसान तो गया..!!
चाहे तुम बंद कर लो दिल के दरवाजे सारे,
हम दिल मे उतर जायेंगे कलम के सहारे..!!
सोचता हूँ कि तेरे दिल में उतर के देखूँ,
क्या बसा है जो मुझे बसने नहीं देता..!!
कोई नहीं करता अब इम्दाद मेरे दिल की,
दुश्मन तो दुश्मन अपने भी तड़पाते हैं..!!